Tuesday, March 13, 2007

Tanhaai

मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बाते करते है.
जाने लोग इस तन्हाई से इतना क्यों डरते है?
तन्हाई तो दोस्त होती है परछाई से भी बड़ी.
जो देती है साथ हर पल हर घड़ी.
परछाई तो अँधेरे में साथ छोड़ देती है.
अनकही, अधूरी सी बात छोड़ देती है.
पर तन्हाई मेरे साथ तब होती है,
जब मेरे साथ कोई नही होता.
वो मेरे साथ हँसती और रोती है,
जब मैं अपनो कि याद में हूँ खोता.
ये तन्हाई मुझे याद दिलाती है हर बीते पल कि,
और भविष्य में आने वाले मंज़िल की.
जब भी मैं और मेरी तन्हाई बाते करते है.
जाने लोग इस तन्हाई से इतना क्यों डरते है?

तनहा मुसाफिर.....

1 comment:

Nadineti said...

tanha ho kabhi, mujhko dhundna
duniya se nahi, dil se puchna.

saanso me tere main bas raha
lamha hoon nashile,yaado mein teri.