Tuesday, March 13, 2007

Dosti

राह-ए-जिन्दगी में दोस्ती का फूल पाया हमने,
और वो फूल बहार-ए-दिल में बसाया हमने.
क्या खबर थी, वो फूल इस कदर खिल उठेगा,
मानो एक स्वप्न है, जो कभी ना टूटेगा.
स्वप्न में जो दोस्त है, वो बहुत सुन्दर है.
जितना बाहर नही, उससे अधिक अन्दर है.
खुदा से ऐसे तोहफे नसीब वालो को मिलते है
भला ऐसे फूल, हर गुलशन में कहाँ खिलते है.
नासमझ है वें, जो इनकी कीमत नही समझते,
नायाब है ये फूल, इनको खुदा भी तरसते.
इनका साथ निभाने को ये जिन्दगी छोटी है,
जो जीते है इनके बिना, उनकी किस्मत खोटी है.

1 comment:

Vaibhav Agarwal said...

hi,
This poem is really very good.
Kudos to u...