तेरी रगो से मैं वाक़िफ तो हूँ
पर मेरा ये ज्ञान अधूरा है
ज़िन्दगी का सफर सुहाना तो है
पर शायद कुछ काम अधूरा है
जख्म है तो एहसान भी है तेरे
लगता है तेरा इंतेज़ाम अधूरा है
कुछ तो खेल किस्मत का भी है
पर लगाऊ किसपे? ये इल्ज़ाम अधूरा है
आँखों के रूबरू ख्यालों का पुलिन्दा
है
पर क्या बताऊ ये ख्वाब अधूरा है
क़र्ज़ चुका दिया पर ब्याज़ बाकि है
तेरा मेरा कुछ हिसाब अधूरा है
तन्हाईयों में खुसफुसाती हैं आहटें
ज़िन्दगी तेरा ये पैग़ाम अधूरा है
मंज़िल की राह पर मैं हूँ तो सहीं
पर मेरा अभी अंजाम अधूरा है.
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