कर्म कर तू कर्म कर, हर सुख तुझे ही भोग्य है।
प्रयास कर प्रयास कर, हर कर्म के तू योग्य है।
माना अंधेरी रात है, घनघोर घटा बरसात है।
तू कयों किरण को खोजती, तू स्वयं हि तो प्रकश है।
मत सोंच तेरी मंज़िल कहाँ,
तू चल ले जाये ये दिल जहाँ।
तू पग उठा, तू कदम बढ़ा, अब दूर नहीं आकाश है।
पुकार मत चीत्कार कर, तू वज्र सी हूंकार कर;
देख तेरी चीत्कार सुन, पराजय भी है भागता;
देख तेरी हुंकार सुन, भय भी थर थर काँपता।
अपनी शक्ति को पहचान, तू नहीं एक नन्ही जान,
तू दृष्टि है, तू वृष्टि है, तू ही त्रिलोक सृष्टि है।
फ़िर कयों मन तेरा उदास है।
तू हँस, तू गा, तू खुशी से मुस्कुरा,
कुछ पाना है तुझे, तो हाथ बढा,
हर सुख तुझे प्राप्य हो, यहीं मेरा प्रयास है।
नादिनेती ।।
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3 comments:
bahut badhiya likhte ho yaar...keep it on..
jaane kyun ye poem pad kar i remembered maithili sharan gupt.. my favr8 Hindi writer..:)
He's been an exceptional writer..
must say, fabulous command over Hindi language :)
नादिनेती ....ye shabd apne aap mein ek poori kavita hai !!
aur kafi acchi koshish hai...khud se rubaroo hone ki....!!!
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