Sunday, October 4, 2009

जन्मदिन

क्षितिज के चिलमन से झाकता है रवि,
होती है सुबह, पर दिन आज कुछ ख़ास है।
शब्दो की भीड़ में कुछ ढून्ढता है कवि,
बुनता है कविता, कि दिल में एक एहसास है।

सूर्ये से रोशनी की एक किरण निकलती है,
और कविता की एक पंक्ति कागज़ पे उतरती है।
हर किरण प्रकृति के चित्र में एक नया रंग भरती है,
और एक पंक्ति यूं ही बेवजह इस कविता में जुड़ती है।

रंगों के इस सरगम पर पक्षी गुनगुनाते है,
और शब्द स्वयं ही जुड़ कर कविता बन जाते है।
सूरज से निकला पर आग नहीं वो शब्द है,
चमत्कार ये देख कवि भी स्तब्ध है।

क्यों है आज प्रकृति इतनी खुशनुमा,
क्यों है आज हर तरफ खुशहाली।
सूर्य तो उगता है रोज़,
पर नहीं देता यूं आभा भरी लाली।

आज तो सूरज भी ख़ुद को रोक नहीं पाया,
कवि की कल्पना से भला कौन बच पाया।
सूरज ने लिखी कविता जो मैंने तुम्हे सुनाया,
इस तरह मैंने तुम्हारा जन्मदिन मनाया।

नदिनेती ...

1 comment:

Anonymous said...

All your work is great. your thoughts are nice. wuld lyk to hear more from you.