कोइ मुझे एक सच्चा यार दे कि किसी की कमि है बहुत।
मानता हूँ ऐ गम तुने हर पल साथ दिया,
कितना भी गहरा हो जख्म तुने हर दम सिया।
याद है वो पल जो हमने साथ जिये,
और हर वो अश्क जो हमने साथ पिये।
पर ऐ गम, मुझपे एक एहसान कर
कुछ देर अब तू ज़रा आराम कर।
जगह नहीं दिल में अब तेरे वास्ते
आज से अलग है अपने रास्ते।
तुझे बुलाउंगा मैं पर आज नहीं
साथ निभाउंगा मैं पर आज नहीं।
कयूँकि बुलावा आया है मेरे यार का,
और मौका है ये खुशी और प्यार का।
ऐ गम ऐ तन्हाई आज मुझे माफ़ कर,
मेरे साथ आज तू एक छोटा सा इन्साफ़ कर।
साथ छोड मेरा कि आज कुछ हिसाब करना है
इस कविता से एक दोस्त को बेताब करना है।
एक दोस्त ने छोटि सी फरमाइश की है
इसलिये इस कविता की आज नुमाइश की है।
कविता और बुलावा तो खैर सब बहाना है
हमारा मकसद तो इस पल को यादगार बनाना है।
नादिनेति …